भदंत आनंद कौसल्यायन - संस्कृति
लेखक की द्रष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
लेखक की दृष्टि में दो शब्द 'सभ्यता और संस्कृति' की सही समझ अभी भी नहीं हो पाई है, क्योंकि इनका उपयोग बहुत अधिक होता है, और वो भी किसी एक अर्थ में नहीं होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं, जैसे - भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। इससे यह समझ में नहीं आता कि यह एक ही चीज है अथवा दो? यदि दो हैं तो दोनों में क्या अंतर है? इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं।
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मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया?
गलत-सलत आत्म-विनाश
महामानव पददलित
हिन्दू-मुसलिम यथोचित
सप्तर्षि सुलोचना
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