अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?
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अठारहवीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए:
- अठारहवीं शताब्दी में नगरों का स्वरूप बदलने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतनोन्मुख हुए और नए नगरों का विकास होने लगा। मुग़ल सत्ता के पतन के साथ ही उसके शासन से जुड़ें नगरों का भी पतन हो गया। मुग़ल राजधानी नगर दिल्ली और आगरा अपने राजनैतिक प्रभुत्व से वंचित होने लगे।
- नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों: लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपटनम, पूना (आज का पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (आज का तंजावुर) का महत्व बढ़ गया।
- व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केन्द्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे।
- नए राज्यों के बीच निरंतर लड़ाइयों का परिणाम यह हुआ कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोज़गार मिलने लगा।
- इस काल में कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों एवं मुगलसत्ता से सम्बद्ध अधिकारियों द्वारा भी 'कस्बे' एवं 'गंज़' जैसी नवीन शहरी बस्तियों को बसाया गया। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को कस्बा कहा जाता था। यह सामान्य रूप से स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति का केंद्र होता था। एक छोटे स्थायी बाज़ार को गंज के नाम से जाना जाता था। कस्बा एवं गंज दोनों कपड़ा, फल, सब्जी एवं दूध-उत्पादों से सम्बन्ध होते थे। वे विशिष्ट परिवारों एवं सेना के लिए सामग्री उपलब्ध करवाते थे।
- व्यापार-तंत्रों में होने वाले परिवर्तनों ने भी शहरी केन्द्रों के इतिहास को प्रभावित किया। यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने पहले, मुराल काल में ही विभिन्न स्थानों पर आधार स्थापित कर लिए थे : पुर्तगालियों ने 1510 मेंपणजी में, डचों ने 16०5 में मछलीपट्नम में, अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी (आज का पुडुचेरी) में व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केंद्रों के आस-पास नगरों का विकास होने लगा।
- अठारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थल-आधारित साम्राज्यों का स्थान शक्तिशाली जल-आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद जैसी शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं।