गोस्वामी तुलसीदास
(CBSE 2008 Outside)
रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।
काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,
काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,
जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,
लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।
प्रसंगः प्रस्तुत काव्याशं रामभक्ति काव्य परपंरा के सशक्त आधार स्तंभ कवि तुलसीदास द्वारा रचित है। इसे उनकी आत्मनिवेदात्मक कृति ‘कवितावली’ से अवतरित किया गया है। इस कृति में तुलसीदास ने राम की कीर्ति के वर्णन के साथ-साथ युगीन परिवेश और परिसपरिस्थितियों का चित्रण किया है। कवि किसी की परवाह नहीं करता कि कोई उसे क्या कहता है वह तो अपने आराध्य राम का दास है।
व्याख्या: तुलसीदास कहते हैं-चाहे कोई मुझे धूर्त कह, अथवा तपस्वी साधु, कोई मुझे राजपूत समझे या जुलाहा ही क्यों न कहे। मुझे इससे कोई अंतर नहीं पड़ता लोगों के कुछ कहने-सुनने से मुझे कोई मतलब नहीं है क्योंकि मुझे किसी की बेटी से अपना बेटा नहीं ब्याहना। इस प्रकार किसी से सामाजिक संबंध बनाकर मैं उनकी जाति भी नहीं बिगाड़ना चाहता। यह जगत् प्रसिद्ध है कि तुलसी केवल राम का गुलाम है। वह श्रीराम के अतिरिक्त अन्य किसी का आश्रय नहीं चाहता। इसलिए जिसको जो कुछ अच्छा लगे, वही मेरे बारे में कहे। मेरा परिचय तो सर्वविदित है। मैं तो माँगकर अपना पेट भरता हूँ और मंदिर में सोता हूँ। मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है अर्थात् किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है।
विशेष: 1. ‘कवितावली’ में अनेक स्थलों पर कवि का विद्रोही और क्रांतिकारी स्वरूप देखा जा सकता है।
2. तुलसी को अनेक सामाजिक विषमताओं का सामना करना पड़ा था, अत: उसने समाज की परवाह न करते हुए केवल राम को ही अपना स्वामी एवं रक्षक माना है।
3. मसीत (मस्जिद) को अपना आश्रयस्थल बताना तुलसी की धार्मिक उदारता का परिचायक है।
4. ‘लैबो को एकु न दैबे को दोऊ’ प्रयोग मुहावरेदार है।
5. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।
6. भाषा: ब्रज।
7. गण: प्रसाद गुण।
8. रस: शांत रस।
Sponsor Area
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?
इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।
(CBSE 2008 Outside)
रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।
काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,
काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,
जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,
लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।
इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?
तुलसीदास तत्कालीन समाज की परवाह क्यों नहीं करते थे?
तुलसीदास स्वयं को किसका गुलाम मानते हैं?
तुलसीदास अपना जीवन-निर्वाह, किस प्रकार करते हैं?
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महूँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।
कवि और कविता का नाम लिखिए।
हनुमान ने संजीवनी बूटी लाने के विषय में राम से क्या कहा?
Sponsor Area
Sponsor Area