गोस्वामी तुलसीदास
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
तब प्रताप उर राखि प्रभु जैहऊँ नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु बाइ पद यदि चलेऊ हनुमंत।।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महूँ जात सराहत पुनि-पुनि पवन कुमार।।
1. इस काव्याशं का कार्य-विषय क्या है?
2. अलंकार-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
3. भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
1. इस काव्यांश में हनुमान द्वारा लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने का वर्णन है।
2. ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘बाहुबल’, ‘पद प्रीति’, ‘मन महुँ’, पुनि-पुनि पवन’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।
3. ब्रजभाषा की सहज अभिव्यक्ति है।
‘पवन कुमार’ हनुमान के लिए प्रयुक्त हुआ है।
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इस पब में किन-किन लोगों का उल्लेख है? उन्हें क्या प्राप्त नहीं होता?
इन लोगों की क्या दशा है? वे क्या कहते हैं?
पेट की प्याला को शांत करने के लिए लोग कैसे-कैसे काम करने को विवश हो आते हैं?
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।
दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!
दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।
प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?
इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।
(CBSE 2008 Outside)
रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।
काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,
काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,
जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,
लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।
इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?
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