गोस्वामी तुलसीदास
दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि कसना महँ वीर रस।।
प्रसगं: लक्ष्मण की मूर्च्छित दशा को देखकर राम विलाप करते हैं।
याख्या: प्रभु राम के विलाप को कानों से सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए। इतने में हनुमान जी आ गए। ऐसा लगा जैसे करुण रस के प्रसंग में वीर रस का प्रसंग आ गया हो।
विशेष: 1. ‘प्रभु प्रलाप’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा: अवधी।
3. छंद: सोरठा।
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प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?
इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।
(CBSE 2008 Outside)
रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।
काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,
काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,
जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,
लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।
इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?
तुलसीदास तत्कालीन समाज की परवाह क्यों नहीं करते थे?
तुलसीदास स्वयं को किसका गुलाम मानते हैं?
तुलसीदास अपना जीवन-निर्वाह, किस प्रकार करते हैं?
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महूँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।
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