तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
यह फ़िल्म एक सामान्य कोटि की मनोरंजक फ़िल्म न होकर एक उच्च कोटि की साहित्यिक फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में अनावश्यक मनोरंजक मसाले नहीं डाले गए थे साथ ही फ़िल्म वितरक इस फ़िल्म की करुणा को पैसे के तराजू में तौल रहे थे और कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं थे इसलिए 'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे।
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फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है?
'शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं' - इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
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