यशपाल-लखनवी अन्दाज़
नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। खीरे की फाँक को सूँघने से मिले स्वाद के आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह से पानी भर आया जिसे वे गटक गए। इसके बाद उन्होंने वह फाँक खिड़की से बाहर फेंक दी। ऐसा ही उन्होंने अन्य खीरे की फाँकों के साथ किया। नवाब साहब ने इस प्रकार से खीरे का इस्तेमाल किया।
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