स्वयं प्रकाश - नेताजी का चश्मा
हालदार साहब को लगा कि चश्मे बेचने वाला कैप्टन नेता जी की संगमरमर की मूर्ति को बिना चश्मे के देखकर उस पर सचमुच के चश्मों के फ्रेम लगाता है तो उसे अवश्य ही नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति अच्छी नहीं लगती होगी। उन्हें वह आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही अथवा नेता जी का सहयोगी देशभक्त लगता है।
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“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया लिखिए।
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