सूरदास - पद

Question

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
       ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?

Answer

इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है, नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है इसलिए उसका प्रेम संदेश गोपियों के लिए निरर्थक था। श्री कृष्ण के प्रेम में निमग्न गोपियों को उसके उपदेश से कोई लाभ नहीं मिलने वाला था।

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Some More Questions From सूरदास - पद Chapter

गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?