सूरदास - पद

Question

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
       ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

उद्धव के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन क्यों नहीं था?

Answer

उद्धव निर्गुण ब्रह्म के प्रति विश्वास रखता था। उस का ब्रह्म रूप-आकार से परे था इसलिए वह स्वयं को श्रीकृष्ण के साकार रूप के प्रति नहीं बांध पाया था। उस के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का बंधन भाव नहीं था।

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