हामिद खाँ - एस. के पोट्टेकाट
तक्षशिला में धर्म के नाम पर धार्मिक झगड़े जन्म लेते रहते थे। इन झगड़ों की खबरें समाचार-पत्र में निकलती रहती थीं। लेखक ने जब इस सांप्रदायिक झगड़े की खबर पढ़ी तो उनका सीधा ध्यान हामिद खाँ की ओर गया उन्होंने प्रार्थना की कि भगवान हामिद खाँ की दुकान को कोई नुकसान न पहुँचाए। हिन्दू-मुसलिम भेद भाव आग उन तक न पहुँच पाए। इससे लेखक के स्वभाव की मानवीय भावना का परिचय मिलता है। उनकी दृष्टि में धर्म की प्रधानता नहीं थी। मानवीयता प्रमुख थी। हामिद खाँ उन्हें भले मानव लगे इसलिए हमदर्दी व सहानुभूति की भावना उनके मन में थी।
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