कल्लू कुम्हार की उनाकोटी - के. विक्रम सिंह
त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त मुख्य भाग में प्रवेश करने से पहले अंतिम पड़ाव टीलियामुरा ही है। राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर अगले 83 किलोमीटर यानी मनु तक की यात्रा के दौरान ट्रैफिक सी.आर.एफ. की सुरक्षा में काफिले की शक्ल में चलता है। मुख्य सचिव और आई.जी. सी.आर.पी.एफ. से मैंने निवेदन किया था कि वे हमें घेरेबंदी में लेकर चलने वाले काफिले के आगे-आगे चले। काफिला दिन में 11 बजे के आसपास चलना शुरू हुआ। सभी काम में मस्त थे उस समय तक डर की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। पहाड़ियों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की तरफ मेरा ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ। ‘दो दिन पहले हमारा एक जवान यहीं विद्रोहियों द्वारा मारा गया था’ मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। मनु तक की अपनी शेष यात्रा में, मैं यह ख्याल अपने दिल से निकाल नहीं पाया कि हमें घेरे हुए सी० आर० एफ० के जवान हैं अन्यथा शांतिपूर्ण प्रतीत होने वाले जंगलों में किसी जगह बंदूकें लिए विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं।
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त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताइए?
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