स्मृति - श्रीराम शर्मा
मनुष्य तो कर्म करता है। उसे फल देने का काम ईश्वर करता है। फल को पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है। मन चाहा फल प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह तो फल देने वाले की इच्छा पर निर्भर है। इस पाठ में लेखक ने चिट्ठियाँ प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास किया और उसे सफलता मिल ही गई गीता में भी कहा गया है कि ‘‘कर्मण्येव वाधिकारस्ते मा फलेषु कदावन कार्य के प्रति आसक्ति रखना उचित नहीं है।
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