स्मृति - श्रीराम शर्मा
मनुष्य हर स्थिति से निपटने के लिए अपना अनुमान लगाता है। वह अपने अनुसार भविष्य के लिए योजनाएँ बनाता है पर ये योजनाएँ हर बार सफल नहीं हो पातीं। ये कई बार झूठी सिद्ध होती हैं। कई बार तो स्थिति बिलकुल उल्टी होती है। जिस प्रकार लेखक के साथ बचपन में घटित हुआ। मक्खनपुर जाते समय जब लेखक की चिट्ठियाँ गिर गयीं। उस समय की स्थिति का लेखक ने अनुमान नहीं लगाया था। कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को लाना-साहस का काम था लेखक धोती के सहारे कुएँ में उतरा था। सामने साँप फन फैलाए बैठा था। धोती पर लटककर साँप को मारना बिलकुल असंभव था। वहाँ डंडा चलाने की भी जगह नहीं थी। लेखक ने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया तो साँप ने डंडे से चिपककर आसन बदल लिया और लेखक चिट्ठियाँ उठाने में सफल हुआ। लेखक इन सब बातों के लिए पहले से पूरी तरह से तैयार नहीं था। लेकिन स्थिति के साथ वह अपनी योजना में परिवर्तन करता गया। इस प्रकार मनुष्य की कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है। यह बात इस घटना से सिद्ध हो जाती है।
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