स्मृति - श्रीराम शर्मा
लेखक को चिट्ठियाँ बड़े भाई ने दी थीं। यदि वे डाकखाने में नहीं डाली जातीं तो घर पर मार पड़ती। सच बोलकर पिटने का भय और झूठ बोलकर चिट्ठियों के न पहुँचने की जिम्मेदारी के बोझ से दबा वह बैठा सिसक रहा था। वह झूठ भी नहीं बोल सकता था। चिट्ठियाँ कुएँ में गिरी पड़ी थीं। उसका मन कहीं भाग जाने को करता था फिर पिटने का भय और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार कलेजे पर फिर रही थी। उसे चिट्ठियाँ बाहर निकाल कर लानी थीं। अंत में उसने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय कर ही लिया।
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