शुक्रतारे के सामान - स्वामी आनंद
आशय-प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जिस प्रकार नक्षत्र मंडल में तेजस्वी शुक्रतारे की दुनिया या तो शाम के समय या बड़े सवेरे केवल एक दो घंटे के लिए देख पाती है उसी प्रकार महादेव भाई भी गाँधी जी के पास आधुनिक भारत के स्वतंत्रता काल में सन् 1917 में पहुँचे। उन्होंने थोड़े से समय में ही अपनी लेखन प्रतिभा, अपने परिश्रम तथा देश के प्रति प्रेम की भावना से सारे संसार को अपनी ओर मोड़ लिया और शुक्रतारे की तरह अल्प समय में अपनी प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व को मंत्र मुग्ध करके सन् 1935 में अस्त हो गए।
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