शुक्रतारे के सामान - स्वामी आनंद
आशय-प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक गाँधी जी के निजी सचिव की निष्ठा, समर्पण और उनकी प्रतिभा का वर्णन करते हुए कहते है कि वे स्वयं को गाँधी जी का निजी सचिव ही नहीं बल्कि एक ऐसा सहयोगी मित्र मानते थे जो सदा उनके साथ रहे। वे गाँधी जी के प्रत्येक गतिविधि उनका भोजन उनके दैनिक कार्यों में हमेंशा उनका साथ देते थे। इसलिए स्वयं को उनका पीर अर्थात् सलाहकार, उनका रसोइया, मशक से पानी ढोने वाला व्यक्ति तथा श्वर के रूप में मानते थे और लोगों को अपना परिचय भी यही कहकर देते थे।
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