कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
आशय-कवि पंक से उत्पन्न कमल की तो प्रशंसा करते हैं। किन्तु पैक को महत्व नहीं देते। उनके अनुसार एक अच्छी चीज को स्वीकार करने के लिए उसमें जुड़ी अन्य चीजों को या व्यक्तियों को स्वीकार करना आवश्यक नहीं है। वासुदेव कृष्ण को कहा जाता है। और लोग उनकी पूजा करते हैं तो उसका अर्थ यह नहीं है उसके पिता वसुदेव को भी पूजे। इसी प्रकार हम हीरों को मूल्यवान मानते हैं किन्तु उसके जनक पत्थर और कोयलें की तो प्रशंसा नहीं करते हैं। इसी प्रकार मोती को गले में डालते हैं उनसे जुड़ी सीपी को गले में धारण नहीं करते। कवियों के अपने तर्क होते हैं। उनसे इस विषय में बहस करना उचित नहीं है। इसलिए उनसे बात न की जाए तो अच्छा है। ये अपनी मनमानी करते हैं। इन्हें जो अच्छा लगे वो ठीक है। इसके आगे वे किसी की नहीं सुनते।
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