कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
आशय-नदी किनारे कीचड़ जब सूखकर ठोस हो जाता है तो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़ को रौंद कर आपस में लड़ते हैं। तब नदी के किनारे उनके पैरों तथा सींगों के चिहन अंकित हो जाते हैं। वे सींग से सींग भिड़ाकर लड़ते हैं और अपने पैरों तथा सींगों से कीचड़ खोद डालते हैं तो वह दृश्य भैंसों के परिवार के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास सामने लाकर उपस्थित कर देता है। ऐसा लगता है कि ये सारा इतिहास इसी कीचड़ में लिखा गया है। अर्थात् कीचड़ में छपे चिह्न उस युद्ध की सारी स्थिति का वर्णन कर देते हैं।
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