कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
जब कीचड़ सूख जाता है तब उसके टुकड़े हो जाते हैं और यह सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते हैं। ज्यादा गर्मी से इन टुकड़ों में दरारें पड़ जाती हैं। ये सूखकर टेड़े हो जाते हैं तब ये टुकड़े सुखाए हुए खोपरों जैसे दिखाई देते हैं। नदी के किनारे समतल और चिकना कीचड़ सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते हैं। जब दो मदमस्त पाड़े लड़ते हैं तो कीचड़ पर अंकित पपद्चिह्नऔर सींगों के चिहन देखने से ऐसा लगता है कि अभी-अभी भैसों के कुल का महाभारत हुआ हो।
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