कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
कीचड़ में कोई पैर डालना पसंद नहीं करता। इससे शरीर गंदा हो जाता है तथा कपड़े मैले हो जाते है। कीचड़ के लिए किसी को सहानुभूति नहीं होती।
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