दुःख का अधिकार - यशपाल
आशय - आशय यह है कि समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों व परम्पराओं का पालन करना पड़ता है तभी वह सामाजिक प्राणी कहलाता है। क्योंकि समाज में अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन मूल्यों को दिया जाता है। इस कहानी में बुढ़िया को घर की मजबूरी फुटपाथ पर खरबूज़े बेचने के लिए विवश कर देती है। वह दिल पर पत्थर रखकर लोगों के ताने सहन करती है। लोग ताना देते हुए कहते है कि इनके लिए बेटा-बेटी, पति-पत्नी और धर्म-ईमान सभी कुछ रोटी ही होती है। लोग किसी की विवशता पर हँस तो सकते है परन्तु उनका सहारा नहीं बन सकते। पेट की आग उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर देती है। दूसरों से सहानुभूति के स्थान पर ताने सुनने पड़े तो मन फूट-फूटकर रोने को चाहता है ऐसा ही कहानी में उस बुढ़िया के साथ हुआ था।
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