दुःख का अधिकार - यशपाल
व्यक्ति के सुख-दुःख में समाज नकारात्मक भूमिका अपनाता है। वह व्यक्ति के दुःख को भली-भाँति समझने की बजाय उसे पीड़ा पहुँचाने का काम करता है। वह दुश्मनों जैसा व्यवहार करता है। एक बिलखती हुई स्त्री का दुःख पूछने की बजाय उसे तरह-तरह के व्यंग्य बाणों से घायल किया जाता है। उस पर ताने कसे जाते हैं। उसके साथ अन्याय पूर्ण व्यवहार किया जाता है। ऐसा व्यवहार कोई शत्रु ही कर सकता है। इसलिए हम कह सकते है कि इस संदर्भ में समाज की भूमिका नकारात्मक होती है।
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