दुःख का अधिकार - यशपाल
अमीर और गरीब में जन्मजात अन्तर होता है। अमीर को दुःख मनाने का अधिकार है गरीब को नहीं। बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रात महिला की याद इसलिए आई क्योंकि वह महिला अपने जवान बेटे की मृत्यु के कारण अढाई-मास तक पलंग से उठ न सकी। पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद मूर्च्छित हो जाती थी। शहर भर के लोगों के हृदय उसके पुत्र शोक को देखकर द्रवित हो उठे थे। दूसरी ओर लोग बुढ़िया पर ताने कस रहे थे। वे उसकी मजबूरी से कोसों दूर थे। उसके दुख को वे समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि वह उस संभ्रात महिला की भाँति बीमार न पड़कर साहस बटोरकर अपना दुख भुलाकर बाजार में खरबूज़े बेचकर अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करने आई थी जो कि लोगों के मन में खटक रहा था। दुख का अधिकार अमीर-गरीब में भेदभाव उत्पन्न करता है। थोड़ा-सा दुख जहाँ अमीरी को हिला देता है वहाँ बड़े-से-बड़ा दुःख भी गरीब को सहज बने रहने पर मजबूर कर देता है। बुढ़िया और दुख से भ्रांत महिला के दुख में यही अन्तर था।
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