दुःख का अधिकार - यशपाल
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर खेती करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाजार में बेचने के लिए कभी-कभी वह चला जाया करता था। वह घर का एकमात्र सहारा था। उसके घर में खाने वाले अधिक और कमाने वाला एक ही था। उनके घर की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई थी। घर के बेटे पर सभी की आशाएँ टिकी होती है। भगवाना ही था जिस पर घर के सभी सदस्यों की आशाएँ टिकी हुई थी। परिवार का निर्वाह करने के लिए वह छोटे-बड़े काम करके घर के सदस्यों का ध्यान रखता था।
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