दुःख का अधिकार - यशपाल
लेखक को जब आस-पड़ोस वालों ने वास्तविकता बताई तो वह बुढ़िया की विवशता को समझ गए। घर में जब कमाने वाला कोई न रहे तो मौत की परवाह न करके घर से बाहर निकलना ही पड़ता है। परन्तु दूसरे लोग किसी भी परिस्थिति में चैन नहीं लेने देते। वैसे भी उन्हें गरीबों के दुःख का अंदाजा नहीं होता। लेखक इसी सोच में डूबे हुए बुढ़िया के दुःख का अंदाजा लगा रहे थे कि अमीर लोग अपने दुख को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करते है। वह बेहोश होने का नाटक करते है। और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहते है। परन्तु लेखक जानते थे कि बुढ़िया अपने मन में दुःख को दबाए हुए है। अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुःख दर्शा रही है।
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