दुःख का अधिकार - यशपाल
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक आदमी घृणा से थूकते हुए कह रहा था कि बेटे की मृत्यु को अभी पूरा दिन नहीं हुआ हैं। और वह दुकान लगा बैठी है। पेट की रोटी ही इनके लिए सब कुछ है जैसी नीयत होती है; वैसी ही बरकत भगवान देता है जवान लड़के की मौत है, बेहया दुकान लगाकर बैठी है। सभी अपने व्यंग्य वाणों से उस स्त्री पर ताने कसे जा रहे थे। वह बेबसी से सिर झुकाए बैठी थी।
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