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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये- श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं रहता। ‘पूर्व लेख’ ही इसका आधार है। इस आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न इतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी यह कि बहुत से लोग ‘निर्धारित’ कार्य को ‘अरुचि’ के साथ केवल विवशतावश करते हैं। ऐसी स्थिति स्वभावत: मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने व कम काम करने के लिए प्रेरित करती है। भारत में ऐसे अनेक व्यवसाय या उद्योग हैं जिन्हें ‘हिंदू लोग’ घृणित मानता है और इस कारण इनमें लगे हुए लोगों में अपने काम के प्रति अरुचि व विरक्ति बनी रहती है क्योंकि इन व्यवसायों को करने के कारण ही हिन्दू समाज उन्हें भी घृणित और त्याज्य समझता है, अत: प्रत्येक व्यक्ति ऐसे व्यवसायों से बचना व उनसे भागना चाहता है। ऐसी स्थिति में जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो न दिमाग, कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। अत: यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक प्रथा है। क्योंकि यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा, रुचि व आत्म-शक्ति को दबा कर उन्हें अस्वाभाविक नियमों में जकड़ा कर निष्क्रिय बना देती है।1. जाति प्रथा का दोष क्या है?2. आज की बड़ी समस्या क्या नहीं है और क्या है?3. व्यक्ति किस प्रकार के व्यवसायों से बचना व भागना चाहता है?4. क्या बात निर्विवाद रूप से सिद्ध है?