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21:06 pm

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Question is

रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।

A. गद्याशं में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी? (i) इस गद्यांश में मलेरिया और हैजे की विभीषिका की चर्चा की गई है। ढोलक उसको ललकार की चुनौती देती थी। उसकी आवाज महामारी की भीषणता को कम करती थी।
B. किस प्रकार के व्यक्तियों को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसी थी? (ii) ढोलक की आवाज से उन व्यक्तियों को राहत मिलती थी जो बीमारी के कारण अधमरे हो रहे थे जिन्हें न तो दवा मिल रही थी और न परहेज का खाना। ढोलक की आवाज से उनमें संजीवनी शक्ति आ जाती थी।
C. ‘दंगल के दृश्य’ से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था? (iii) बीमारी के कारण बूढ़े, बच्चों और जवानों की बुझी आँखों में ढोलक की आवाज पड़ते ही दंगल का सा दृश्य नाचने लगता था अर्थात् उनमें उत्साह का संचार हो जाता था।
D. ढोलक की आवाज अपने गुण और शक्ति की दृष्टि से कहीं कम प्रभावकारी थी और कहीं अधिक-ऐसा क्यों? (iv) ढोलक की आवाज अपने गुण तथा शक्ति की दृष्टि से कहीं अधिक प्रभाव दिखाती थी तो कहीं कम। ऐसा इसलिए था क्योंकि कहीं लोगों को ज्यादा राहत महसूस होनी थी तो कहीं कम। ढोलक की आवाज में सर्वनाश रोकने की शक्ति भले ही न हो पर उसका प्रभाव सभी पर कम-अधिक पड़ता था।

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