विजयी लुट्टन जूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की- 'हें-हें…अरे-रे!' किन्तु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा- 'जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली!'
पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँदसिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया- 'हुजूर! जाति का दुसाध…सिंह…!'
मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन-शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले- 'हाँ सरकार, यह अन्याय है!'
A.
कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने क्या किया?
| (i)
कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने ताल-ठोंककर, ढोल वालों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया।
|
B.
उसके व्यवहार पर किसने आपत्ति की और क्यों?
| (ii)
उसके इस प्रकार के व्यवहार पर मैनेजर साहब ने आपत्ति की क्योंकि इससे राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए थे।
|
C.
राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया और उस पर किसने ऐतराज किया?
| (iii)
राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीते रही, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” जब राजा ने लुट्टन को दरबार में रखने की घोषणा की तथा उसे लुट्टनसिंह कहकर पुकारा तब राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया और अपना ऐतराज प्रकट करते हुए कहा-यह तो जाति का दुसाध है।
|
D.
मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया?
| (iv)
मैनेजर ने यह कहकर विरोध किया-यह अन्याय है।
|
E.
मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया?
| (v)
राजा साहब ने यह कहकर लुट्टन का बचाव किया कि उसने काम तो क्षत्रिय का किया है। अत:वह इस सम्मान का अधिकारी है।
|