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पिता जी जिनको बुढ़ापा,एक क्षण भी नहीं व्यापाजो अभी भी दौड़ जाएँ,जो अभी भी खिलखिलाएँमौत के आगे न हिचकें,शेर के आगे न बिचकें,बोल में बादल गरजताकाम में झंझा लरजताआज गीता-पाठ करकेदंड दो सौ साठ करके,खूब मुगदर हिला लेकरमूठ उनकी मिला लेकर