'सपनों केसे दिन' पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था|पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्यामहत्त्व है और इससे किन जीवनमूल्यों की प्रेरणा मिलती है? स्पष्ट कीजिए।
अभिभावकों का मानना था कि बच्चे पढ़ाई के स्थान पर खेलते रहेंगे, तो पढ़ाई नहीं कर पाएँगे। इससे उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद होगा। यही कारण है कि वे बच्चों को पढ़ने के लिए कहते थे। यदि बच्चे कहीं खेलते दिख जाते थे, तो उनकी बहुत पिटाई होती थी। जीवन में पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी बहुत महत्त्व है। विद्यार्थियों के लिए तो खेल उत्तम औषधी के समान है। पढ़ाई करने के बाद खेलने से मन को नई शक्ति प्रदान होती है। खेलने से विद्यार्थियों में उपजा तनाव कम होता है। लगातार पढ़ने से उत्पन्न झुंझलाहट भी समाप्त हो जाती है। शरीर मज़बूत बनता है। पढ़ाई में मन लगा रहता है। विद्यार्थी आज खेलों के माध्यम से उज्जवल भविष्य भी पा रहे हैं। खेलों को व्यवसाय के रूप में अपनाने से खिलाड़ी देश-विदेश में यश और धन दोनों कमा रहे हैं। इन सब बातों को देखते हुए हम खेलों के महत्व को नकार नहीं सकते हैं। इसके अतिरिक्त खेलों से जीवन में परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है। आलस को दूर भगाने में सहायता मिलती है और जीवन में आगे बढ़ते रहने का संदेश मिलता है। यह बच्चों में प्रेम भावना और आपसी सहयोग की भावना को भी बढ़ाता है।