मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के पिपरिया में हज़ारो आदिवासी और जंगल में रहने वाले लोग सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क, बोरी वन्यजीव अभ्यारण्य और पंचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य से अपने प्रस्तावित विस्थापन का विरोध करने के लिए जमा हुए। उनका कहना था की यह विस्थापन उनकी जीविका और उनके विश्वासों पर हमला है। सरकार का दावा है इलाके के विकास और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए उनका विस्थापन ज़रूरी है। जंगल पर आधारित जीवन जीने वाले की तरफ़ से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक पत्र, इस मसले पर सरकार द्वारा दिया जा सकने वाला संभावित जवाब और इस मामले पर मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तैयार करो।
सेवा में,
अध्यक्ष,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
श्रीमान्
सविनय निवेदन यह कि हम बनवासी लोग सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क, बोरी वन्यजीव अभ्यारण्य और पंचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्रों में सदियों से रहते आ रहे हैं। हमारे पूर्वज जंगलो में रहते थे तथा 'वन देवता' और 'पर्वत' की पूजा करते थे। हमारी जीविका का मुख्य स्त्रोत वन है। इन वनों से हमारी परम्पराएँ तथा मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।
अत: आप से अनुरोध हैं कि इस मामले की जांच करें और हमारी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमे उचित न्याय दिलवाएँ। इसके लिए हम सब बनवासी सदैव आपके आभारी रहेंगे।
इस मामले पर सरकार और एनएचआरसी की रिपोर्ट का जवाब:
वन्यजीव क्षेत्र के संरक्षण अथवा विकास के लिए सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क,बोरी वन्यजीव अभयारण्य और पंचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य से विस्थापन आवश्यक है।



