सी. के. जानू और अन्य कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी भी अपने परंपरागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के इस कानून क्या इस्तेमाल कर सकते हैं? इस कानून के प्रावधान में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है?
इस कानून अनुसार यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के नाम पर आवंटित की गई या उसकी स्वामित्व वाली जमीन पर कब्जा करता है या खेती करता है या उसे अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लेता है तो उसे सजा दी जाएगी।
आदिवासी कार्यकर्ता सी. के. जानू का का भी यही कहना है कि जो आदिवासी पहले की बेदखल हो चुके हैं और उनमे से जो अब वापस नहीं लौट सकते उन्हें भी मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि सरकार ऐसी योजनाएँ बनाए जिनके सहारे वे नए स्थानों पर रह सकें और काम कर सकें।
अन्य आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परंपरागत जमीन पर अपने कब्जे की बहाली के लिए 1989 के अधिनियम का सहारा लेते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों ने आदिवासियों की जमीन पर ज़बरदस्ती कब्जा कर लिया है उन्हें इस कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि संवैधानिक रूप से आदिवासियों की जमीन को किसी गैर-आदिवासी व्यक्ति को नहीं बेचा जा सकता जहाँ ऐसा हुआ है वहां संविधान की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें उनकी जमीन वापस मिलनी चाहिए।