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गोस्वामी तुलसीदास

Question
CBSEENHN12026337

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिन्न। मोही।।

जैहऊँ अवध कवन हु लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई।।

बरु अपजस सहतेऊँ जग माहीं। नारि हानि बिशेष छति नाहीं।।

Solution

प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘लंकाकांड’ से अवतरित है। लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम विलाप करने लगते हैं। हनुमान औषधि लेने गए हहैं।उनके आने में विलंब हो जाता है तो राम व्याकुल हो जाते हैं।

व्याख्या: लक्ष्मण की मूर्च्छा से व्याकुल होते हुए श्रीराम विलाप करते हैं-जैसे पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं। हे भाई! यदि कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे, तो तुम्हारे बिना मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा।

मैं स्त्री (पत्नी) के लिए प्यारे भाई को खोकर कौन-सा मुँह लेकर अवध जाऊँगा। मैं जगत में बदनामी भले ही सह लेता (कि राम में कुछ भी वीरता नहीं है जो अपनी पत्नी को खो बैठे) स्त्री (पत्नी) की हानि से (इस हानि को देखते हुए) कोई विशेष क्षति नहीं थी।

विशेष: 1. श्रीराम की व्याकुलता का मार्मिक अंकन हुआ है।

2. अनेक दृष्टांत देकर राम ने अपनी संभावित दशा का वर्णन किया है।

3. ‘बंधु बिनु’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

4. भाषा: अवधी।

5. छंद: चौपाई।

6. रस: करुण।

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प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।

जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?

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इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

धूत कहौ, अवधूत कहा,

(CBSE 2008 Outside)

रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,

जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।

माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,

लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।

इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।

मन महूँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।