जैहऊँ अवध कवन मुहूँ लाई।
नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।।
बस अपजस सहतेंऊ जग माहीं।
नारि हानि विसेष छति नाहीं।।
-भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के शोक में डूबे हुए थे। वे विलाप कर रहे थे। उनका विलाप प्रलाप का रूप धारण करता जा रहा था। तब उनकी मन:स्थिति कुछ विचित्र सी हो गई थी। इसी मानसिक दशा में वे कह बैठे-”मैंने नारी पत्नी) के लिए अपने भाई को गँवा दिया। अब मैं कौन सा मुँह लेकर अवध जा पाऊँगा। मैं जगत में अपनी यह बदनामी भले ही सह लेता कि राम पत्नी की रक्षा तक नहीं कर सका, पर भाई की हानि के समक्ष पत्नी की हानि कुछ भी नहीं थी।”
प्रलाप में बोले गए ये वचन प्रत्यक्ष रूप से तो यह दर्शाते हैं कि स्त्री के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण कोई बहुत अच्छा नहीं है। यह समाज स्त्री को तो खो सकता है, भाई को नहीं।
पर यह वास्तविकता नहीं है। विलाप-प्रलाप में व्यक्ति बहुत सी अंट-शंट बातें बोल जाता है। उनमें वास्तविकता कम, तात्कालिकता अधिक होती है।