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गोस्वामी तुलसीदास

Question
CBSEENHN12026375

भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

Solution

भ्रातृशोक में प्रभु एक सामान्य व्यक्ति का रूप धारण कर लेते हैं। वे एक सामान्य जन के समान भाई के लिए विलाप करते हैं। वे प्रभुता का पद त्यागकर सच्ची मानवीय अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करते हैं। कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा और महान क्यों न हो वह एक मानव भी होता है। मानव के हृदय की अपनी अनुभूतियाँ भी होती हैं। वह उनके वशीभूत होकर सामान्य जन की भाँति व्यवहार करता है।

कवि ने भी इस प्रसंग में लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर प्रभु की नर लीला की अपेक्षा राम की सच्ची मानवीय अनुभूति वाली दशा दर्शायी है। हाँ, हम इससे सहमत हैं। राम विलाप करते हैं लक्ष्मण के पूर्व व्यवहार का स्मरण करते हैं। वे तो यहाँ तक कह जाते हैं कि यदि उन्हें ऐसा पता होता तो वे पिता की आज्ञा मानने से इनकार कर देते।

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

खेती न किसान को, भिखारी न भीख, बलि,

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।

जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,

कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,

साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।

दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!

दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।

प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।

जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?

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इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

धूत कहौ, अवधूत कहा,

(CBSE 2008 Outside)

रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,

जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।

माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,

लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।

इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?

तुलसीदास तत्कालीन समाज की परवाह क्यों नहीं करते थे?

तुलसीदास स्वयं को किसका गुलाम मानते हैं?