ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।
तुलसीदास अपने युग की बेकारी और आर्थिक दुर्दशा के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इसी के कारण लोग ऊँचे-नीचे काम करने, धर्म-अधर्म करने को विवश हो जाते हैं। पेट की आग बुझाने के लिए वे बेटा-बेटी को बेचने तक को तैयार हो जाते हैं।