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गोस्वामी तुलसीदास

Question
CBSEENHN12026359

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें                                                               कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।।

तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे।

दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।

अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।

Solution

प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं ‘रामचरितमानस’ के ‘लंकाकांड’ से उद्धत है। मेघनाद की शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे, पर लंका के वैद्य सुषेण के उपचार से वे स्वस्थ भी हो गए। जब रावण को यह समाचार मिला तो उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि उनका सब किया-कराया बेकार चला गया।

व्याख्या: कुंभकर्ण का प्रश्न सुनकर उस अभिमानी रावण ने वह सारी कथा कही कि वह किस प्रकार सीता का हरण करके लाया था। तब से अब तक की सारी कथा सुना दी। फिर कहा-हे तात! वानरों ने सब राक्षस मार डाले हैं। उन्होंने हमारे बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला है।

रावण ने कुंभकर्ण को बताय-देवताओं का शत्रु और मनुष्यों का भक्षक दुर्मुख, भारी अतिकाय और अकंपन तथा महोदर आदि सभी दूसरे रणधीर वीर युद्ध में मारे गए।

विशेष: 1. रावण की विह्वलता का मार्मिक अंकन हुआ है।

2. ‘कथा कही’ में अनुप्रास अलंकार है।

3. ‘महा-महा’ में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है।

4. भाषा: अवधी।

5. छंद: चौपाई।

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इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

धूत कहौ, अवधूत कहा,

(CBSE 2008 Outside)

रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,

जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।

माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,

लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।

इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।

मन महूँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।

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