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गोस्वामी तुलसीदास

Question
CBSEENHN12026354

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें                                                              
यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद मुनि मुनि सिर धुनेऊ।।

व्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। विविध जतन करि ताहि जगावा।।

जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहूँ कालु देह धरि वैसा।।

कुंभकरन बूझा कह भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।।

Solution

प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं ‘रामचरितमानस’ के ‘लंकाकांड’ से उड़त है। मेघनाद की शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे, पर लंका के वैद्य सुषेण के उपचार से वे स्वस्थ भी हो गए। जब रावण को यह समाचार मिला तो उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि उनका सब किया-कराया बेकार चला गया।

व्याख्या: लक्ष्मण की मूर्च्छा टूटने का समाचार जब रावण ने सुना तब उसने अत्यंत विषाद (दुःख) के मारे बार-बार अपना सिर पीटा। वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसे जगाया।

कुंभकर्ण जाग गया अर्थात् उठ बैठा। वह ऐसा दिखाई देता था मानो काल ही स्वय शरीर धारण करके बैठा हो। कुंभकर्ण ने पूछा-है भाई! कहो तो तुम्हारे मुख सूख क्यों रहे हैं? अर्थात् तुम्हें क्या कष्ट है?

विशेष: 1. रावण की दुःखी दशा का अंकन किया गया है।

2. ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

3. ‘मानहु कालु…’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

4. भाषा: अवधी।

5. छंद: चौपाई।

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इन लोगों की क्या दशा है? वे क्या कहते हैं?

पेट की प्याला को शांत करने के लिए लोग कैसे-कैसे काम करने को विवश हो आते हैं?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

खेती न किसान को, भिखारी न भीख, बलि,

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।

जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,

कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,

साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।

दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!

दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।

प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।

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इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

धूत कहौ, अवधूत कहा,

(CBSE 2008 Outside)

रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,

जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।

माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,

लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।

इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?

तुलसीदास तत्कालीन समाज की परवाह क्यों नहीं करते थे?