आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था जोर जबर्दस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाब था
न ताकत!आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था जोर जबर्दस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाब था
न ताकत!कवि के अनुसार कविता की उड़ान कौन नहीं जानता?
कवि की उड़ान और चिड़िया की उड़ान में क्या अंतर है?
प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?
कविता एक खिलना है फूलों के बहानेकविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने!
कविता का फूलों के बहाने खिलना कैसे है?
कविता और फूलों में क्या अंतर है?
कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?
इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?
प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?
कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?
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