निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
लेखक जब पंतग लूट रहा था तो उसकी आँखे आसमान की ओर थी और मन पंतग रूपी शहगीर की तरह। उसे पंतग एक दिव्य आत्मा जैसी लग रही थी जो धीरे-धीरे नीचे आ रही थी और वह उसे पाने के लिए दौड़ रहा था।