Question
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।
इस पद में परोक्ष रूप से उद्धव को क्या समझाया गया है?
Solution
इस पद में उद्धव को समझाया गया है कि वह ज्ञानवान है, नीतिवान है, प्रेम से विरक्त है इसलिए उसका प्रेम संदेश गोपियों के लिए निरर्थक था। श्री कृष्ण के प्रेम में निमग्न गोपियों को उसके उपदेश से कोई लाभ नहीं मिलने वाला था।