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सूरदास - पद

Question
CBSEENHN10001470

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये 
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करो।
यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिन के मन चकरी।।

गोपियों के लिए योग व्यर्थ क्यों था?

Solution
गोपियों का मन श्रीकृष्ण के प्रति पूरी तरह रमा हुआ था। वे तो स्वयं को मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण का मानती थीं, इसलिए उनके लिए योग व्यर्थ था।

Some More Questions From सूरदास - पद Chapter

गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

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‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

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प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

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