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एक तिनका

Question
CBSEENHN7000389

‘एक तिनका’ कविता में घमंडी को उसकी ‘समझ’ ने चेतावनी दी-

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,

एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

इसी प्रकार की चेतावनी कबीर ने भी दी है-

तिनका कबहूँ न निंदिए, पाँव तले जो होय|

कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय||

  • इन दोनों में क्या समानता है और क्या अंतर? लिखिए।

Solution

इन दोनों में समानता व अंतर को समझने से पहले इसके आशय को जानना बहुत आवश्यक है। सर्वप्रथम हम उपाध्याय जी की पंक्तियों की ओर देखते हैं। इसमें वह कहते हैं –

तू किस के कारण इतना अभिमानी (घमंडी) हो गया था और तेरा वह अभिमान किस काम का जो कि एक तिनके के कारण चूर-चूर हो गया अर्थात्‌ एक तिनका तेरा घमंड तोड़ सकता है।

दूसरी तरफ़ कबीर जी कहते हैं –

आप जब मार्ग पर चलते हैं, आपके पैरों के नीचे ज़मीन पर पड़े तिनके की निंदा मत कीजिए क्योंकि अगर कभी वह उड़कर आपकी आँख पर गिर गया तो बहुत ही भयानक दर्द का कारण बन सकता है। अर्थात्‌ अभिमान से ग्रसित व्यक्ति को चाहिए की किसी को भी अपने से कमज़ोर व छोटा न समझे क्योंकि जब समय बदलता है तो एक तिनका भी बहुत भारी विपदा दे सकता है।

समानता –

(1) उपाध्याय जी व कबीरदास जी ने घंमड ना करने की शिक्षा ही है।

(2) दोनों ने ही इस शिक्षा को देने के लिए तिनके का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

अंतर –

दोनों ने कही तो एक ही बात है परन्तु उनकी कहानी के आशय में अंतर है। एक तरफ़ उपाध्याय जी ने यहाँ स्वयं को सम्बोधित किया है, उनके अनुसार एक समय में इतने अभिमानी थे कि स्वयं को कुछ नहीं समझते थे। पर एक तिनके के कारण उनका सारा अभिमान जाता रहा, तो दूसरी तरफ़ कबीरदास जी ने तिनके को सम्बोधित किया है। उनके अनुसार कभी भी दूसरे व्यक्ति को छोटा समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि समय की स्थिति कैसी पड़े कि वो तिनका (छोटा व्यक्ति) उसकी पीड़ा का कारण बन जाए।

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