आशय स्पष्ट कीजिए -
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पता।
आज बदलते समय के साथ मनुष्य के विचारों में भी बदलाव आ गया है। आज मनुष्य पहले कि अपेक्षा अधिक आत्मकेंद्रित हो गया है। आज मनुष्य, मनुष्य के भाव को नहीं समझ पाता है। ऐसे में कवि ने एक मूक पशु की भावनाओं का अनुभव कर लिया। कवि कहते है - गुरुदेव के स्पर्श को कुत्ता आँखें बंद करके अनुभव करता है, तब ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पर्श ने तृप्ति मिल गई हो।