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दुःख का अधिकार - यशपाल

Question
CBSEENHN9000451

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और... दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है!

Solution
आशय-इस पंक्ति का आशय यह है कि आज के इस समाज में दुःख मनाने का अधिकार भी केवल धनी वर्ग को होता है। यह सत्य है कि दुःख सभी को तोड़कर रख देता है। दुख में मातम सभी मनाना चाहते है चाहे वह अमीर हो या गरीब। दुःख का सामना होने पर सभी विवश हो जाते है। गरीब व्यक्ति के पास न तो दुख मनाने की सुविधा है न समय है वह तो रोजी-रोटी के चक्कर में ही उलझा रहता है। सम्पन्न वर्ग शोक का दिखावा अवश्य करता है। परन्तु वे अभागे लोग जिन्हें न दुख मनाने का अधिकार है और न अवकाश। जो परिस्थतियों के सामने घुटने टेक देते है, उन्हें पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए दुखी होते भी काम करना पड़ता है। इस प्रकार निचली श्रेणी के लोगों को रोटी की चिन्ता दुःख मनाने के अधिकार से वंचित कर देती है।

Some More Questions From दुःख का अधिकार - यशपाल Chapter

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना की क्यों न बिक जाएँ।
भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करते में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूजे दे दिए लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी-चवन्नी भी कौन उधार देता।
बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूजे डलिया में समेटकर बाज़ार की ओर चली-और चारा भी क्या था?
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) लेखक ने समाज की किस कुप्रथा पर व्यंग्य किया है?
(ग) भगवाना की माँ के सामने कौन-सी समस्या आ खड़ी हुई?
(घ) भगवाना की माँ ने बच्चों का पेट भरने का प्रबधं कैसे किया?

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
बुढ़िया खरबूज़े बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर रो रही थी।
कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली है, हाय रे पत्थर-दिल!
उस पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से पूछा आ जाती थी और मूर्छा ने आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।
जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज हो जाते हैं। उसी हालत में नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकरें खाता मैं चला जा रहा था। सोच रहा था-
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और.... दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो?
(ख) बुढ़िया को पत्थर दिल क्यों कहा गया है वह क्यों रो रही थी?
(ग) संभ्रात महिला ने पुत्र-शोक में कैसा व्यवहार किया?
(घ) संभ्रात महिला के दुःख को दूर करने के लिए कैसे-कैसे प्रयत्न किए गए?
(ङ) लेखक ने किसके लिए सहूलियत की माँग की हे और क्यों?

निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?

निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?

निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?

निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?

निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
(क) 
मुनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

(क) निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?