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युगों का दौर
रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा कि मेरे देश को जानने के लिए उस युग की यात्रा करनी होगी जब भारत ने अपनी आत्मा को पहचानकर अपनी भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण किया।
अर्थात् उनका यह मानना था कि भारत देश की वास्तविकता काे यदि हम परखना चाहते हैं तो हमें उसके उस काल को देखना होगा जब यह अपने-आप में पूर्ण था और इससे बाहर के देशों में अपने उपनिवेश कायम कर व्यापार और धर्म को बढ़ाया।
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