CBSE hindi
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
(क) अोचुमेलॉव की दो चारित्रिक विशेषताओं का अपने शब्दों में उल्लेख कीजिए।
(ख) 'अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले' पाठ के आधार पर लिखिए कि समुद्र के गुस्से का क्या कारण था? उसने अपने गुस्सा कैसे व्यक्त किया?
(ग) सआदत अली कौन था? कर्नल उसे अवध के तख्त पर क्यों बिठाना चाहता था?
(क) ओचुमेलॉव की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. अवसरवादी- ओचुमेलॉव अवसरवादी व्यक्ति है।अवसर का लाभ उठाना उसे बेहद ही अच्छे तरीके से आता है | पहले वह ख्यूक्रिन के पक्ष में बोल रहा था परंतु जैसे ही उसे पता चला कि कुत्ता जनरल साहब का है, तो वह तुरंत को कुत्ते के पक्ष में बोलने लगता है |
2. चापलूस- ओचुमेलॉव एक चापलूस व्यक्ति है।जब तक वह इस सच से अनजान था कि कुत्ता जनरल साहब का नहीं है, तब तक वह कुत्ते के मालिक को सज़ा दिलाने के लिए तैयार था। परन्तु जनरल साहब का कुत्ता होने की बात पता चलने पर जनरल साहब के प्रति वफादर हो जाता है और कुत्ते को सकुशल घर भिजवा देता है।
(ख) कई सालों से बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे थे और उसकी जमीन हथिया रहे थे अब समुद्र की सीमा सिमटती जा रही थी| उसने अपनी टांगें समेटी फिर आकर बैठा फिर खड़ा हो गया फिर भी जगह कम पड़ने लगी तू समुद्र गुस्से में आ गया | उसने तीन जहाज फेक दिए|
(ग) सआदत अली वज़ीर अली का चाचा और नवाब आसिफउदौला का भाई था। सआदत अली अंग्रेज़ों का चमचा था। अंग्रेज़ जानते थे कि यदि अवध को अपने अधिकार में लेना है, तो सआदत अली का तख्त पर बैठना आवश्यक है। वज़ीर अली के रहते अवध को अपने कब्जे में लेना संभव नहीं था। यही कारण था कि वह सअादत अली को तख्त पर बैठाना चाहते थे।
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'झेन की देन' पाठ में जापानी लोगों को मानसिक रोग होने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? आप इनसे कहाँ तक सहमत हैं? तर्क सहित लिखिए।
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताए हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है ,दिमाग हजार गुना अधिक तेजी से दौड़ आता है| अतः तनाव बढ़ जाता है| मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का नियंत्रित रूप से कार्य न करना है |हम यह भी मानते हैं कि मानसिक रोग ज्यादा से ज्यादा तनाव पैदा करता है जिससे मस्तिष्क पर अत्यधिक तनाव ,अत्यधिक दुख या कष्ट उत्पन्न हो सकते हैं यह स्थिति मनुष्य को बीमार बना देती है| आज का मनुष्य संतोष भरा जीवन व्यतीत नहीं करते वह बस भागना चाहते हैं इस दौड़ में सबसे आगे निकलना चाहते हैं यही स्थिति है उन्हें मानसिक रोगी बना देती है इन सारे कथनसे हम बिल्कुल सहमत हैं
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
(क) बिहारी ने ईश्वर प्राप्ति में किन साधनों को साधक और किनको बाधक माना है?
(ख) महादेवी वर्मा अपने दीपक को किस प्रकार जलने के लिए कह रही है और क्यों?
(ग) कर चले हम फ़िदा गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
(क) बिहारी के अनुसार ईश्वर को केवल सच्ची भक्ति से ही पाया जा सकता है| हाथ पर हाथ धरे केवल माला लेकर जपने या फिर माथे पर चंदन का तिलक लगाकर या भजन गाने से नहीं |यह सभी बाहरी आडंबर हैं इस प्रकार के आडंबरों से ईश्वर की सच्ची प्राप्ति नहीं की जा सकती |
'आत्मत्राण' कवित में कवि की प्रार्थना से क्या संदेश मिलता है? अपने शब्दों में लिखिए।
'आत्मत्राण' कविता रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित कविता है। आत्मत्राण कविता में कवि मनुष्य को भगवान के प्रति विश्वास बनाए रखने का संदेश देता है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि चाहे कितना कठिन समय हो या कितनी विपदाएँ जीवन में हों। परन्तु हमारी आस्था भगवान पर बनी रहनी चाहिए। उनके अनुसार जीवन में थोड़ा-सा दुख आते ही, मनुष्य का भगवान पर से विश्वास हट जाता है। कवि भगवान से प्रार्थना करता है कि ऐसे समय मैं आप मेरे मन में अपने प्रति विश्वास को बनाए रखना। उनके अनुसार भगवान पर विश्वास ही उन्हें सारी विपदाओं व कठिनाइयों से उभरने की शक्ति देता है। दूसरे वह (भगवान) मनुष्य को विषम परिस्थितियों में निडर होकर लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके अनुसार भगवान में वे शक्तियाँ हैं कि वह असंभव को संभव को बना सकते हैं। परन्तु कवि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हो, वह उनसे स्वयं आमना-सामना करें। भगवान मात्र उसका सहयोग करे।
घर वालों के मना करने पर भी टोपी का लगाव इफ़्फ़न के घर और उसकी दादी से क्यों था? दोनों के अनजान, अटूट रिश्ते के बारे में मानवीय मूल्यों की दृष्टि से अपने विचार लिखिए।
टोपी को इफ़्फ़न से और इफ़्फ़न की दादी से जो प्रेम था, वह अकथनीय था। उसे जितना प्रेम वहाँ मिला उसे अपने घर में नहीं मिला। यही कारण था कि घर वालों के मना करने पर भी टोपी का लगाव इफ़्फ़न के घर और उसकी दादी से था। इफ़्फ़न की दादी ने तो जैसे उसके कोमल मन में गहरा स्थान पा लिया था। यह प्रेम ही तो था, जिसने न धर्म को देखा न उम्र को बस ह्दय को देखा और जीवन में आत्मसात हो गया। प्रेम ऐसा भाव है जिसमें व्यक्ति जाति-पाति, धर्म, ऊँच-नीच, बड़े-छोटे के सभी बंधनों को भूल जाता है।
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