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जो व्यक्ति दूसरों के हित को सर्वापरि मानता हैं तथा जिसमे मानवता, दया, साहनुभूति आदि गुण होते हैं, जो मृत्यु के बाद भी औरों के द्वारा सम्मान की दृष्टि से याद किया जाता है, उसी की मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है।
जो व्यक्ति प्राणी मात्र से प्रेम की भावना रखता है तथा जिसका जीवन परोपकार और मनुष्यता की सेवा में व्यतीत होता है जो अपना पूरा जीवन पुण्य व लोकहित कार्यो में बिता देता है। किसी से भेदभाव नहीं रखता, आत्मीय भाव रखता है तथा जो निज स्वार्थों का त्याग कर जीवन का मोह भी नहीं रखता, वही उदार व्यक्ति कहलाता है।
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए उदार होने तथा परोपकारी होने की प्ररेणा दी है। हमे अपने प्राण तक न्योंछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियॉ तथा कर्ण ने खाल तक दान कर दी। इससे यह सन्देश मिलता है कि इस नाशवान शरीर के प्रति मोह को त्यागते हुए, मानवता के कल्याण के लिए मनुष्य को आवश्यकता पड़ने पर इसका बलिदान करने से भी पीछे नही हटना चाहिए।
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं इसलिए लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर एक दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना ही मनुष्यता का सर्वोपरि गुण है। इसी से शांति तथा उन्नति संभव हो सकती है।
व्यक्ति को मानव की सेवा करते हुए, परोपकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए, साथ ही अपने अभीष्ट मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। अपने व्यक्तिगत स्वार्थो का त्याग कर दूसरों के हित का चिंतन करना चाहिए। धन संपति को लेकर कभी भी अहंकारी नही बनना चाहिए। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर हमेशा उनके सहायक बनते हैं। इस दौरान जो भी विपत्तियॉ आऍं,उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।
कवि कहता है कि कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर गर्व मत करो क्योंकि अनाथ तो कोई नहीं है।इस संसार का स्वामी ईश्वर तो सबके साथ है और ईश्वर तो बहुत दयालु ,दीनों और असहायों का सहारा है और उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है।प्रभु के रहते भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत ही भाग्यहीन है।सच्चा मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है।
कवि कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो कठिनाई या बाधा पड़े उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ जाओ। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा आपसी सामंजस्य न घटे और हमारे बीच भेदभाव न बढ़े।हम तर्क रहित होकर एक मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलें।एक दूसरे को तारते हुए अर्थात् उद्धार करते हुए आगे बढ़े तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी अर्थात् हम तभी समर्थ माने जाएंगे जब हम केवल अपनी ही नहीं समस्त समाज की भी उन्नति करेंगे।सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए मरता है।
Q11(क) बिहारी के दोहों की रचना मुख्यतः किन भावों पर आधारित है ? उनके मुख्य ग्रंथ और भाषा के नाम का उल्लेख कीजिये । (2)
(ख) 'मनुष्यता' कविता में कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा गया है और क्यों ? (2)
(ग) 'कर चले हम फिदा ' कविता में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है ? (1)
(क) बिहारी के दोहों की रचना मुख्यत: प्रेम, मौसम, भक्ति, आडंबर, इत्यादि पर आधारित है| उनका मुख्य ग्रंथ बिहारी सतसई है और उनकी भाषा मानक ब्रज है|
(ख) सुमृत्यु वह है, जो दूसरों के लिए न्योछावर हो जाए| सभी मनुष्य स्वयं के लिए जीते हैं और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं| पर यदि कोई मनुष्य दूसरों को बचाने के लिए या फिर परोपकार के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है, तो उसका जीवन तथा मृत्यु दोनों सफल हो जाते हैं| ऐसी मृत्यु को ही सुमृत्यु कहा गया है|
(ग) मनुष्य को सबसे प्रिय अपनी प्रिया या दुल्हन होती है। वह उसके घर का मान-सम्मान और उसका प्रेम होती है। अतः उस पर कोई बुरी नज़र उठाए, तो वह उस व्यक्ति की जान भी ले सकता है। अपनी प्रिया या पत्नी की रक्षा करना उसका धर्म होता है। अतः वह उसकी सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकता है। यही कारण है कि धरती को दुल्हन कहा गया है। इस कारण सैनिक उसकी रक्षा के लिए प्रबल शक्ति से भर जाता है।
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(क) 'मनुष्यता' कविता में कवि ने किन महान व्यक्तियों के उदाहरणों से मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिये हैं? किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।
(ख) 'मनुष्यता' कविता में कवि ने सबको एक होकर चलने के प्रेरणा क्यों दी है? इसके क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवयित्री महादेवी वर्मा की कविता 'मधुर मधुर मेरे दीपक जल' का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
(घ) 'आत्मत्राण' कविता में कवि की क्या कामनाएँ हैं? अपने शब्दों में संक्षेप में लिखिए।
(क) मनुष्यता कविता में कवि ने कर्ण, राजा उशीनर तथा दधीचि ऋषि का उदाहरण देकर मनुष्यता की भावना को जीवित रखने का संदेश दिया है। कवि लोगों को जन कल्याण के लिए प्रेरित करता है। उसके अनुसार जैसे इन तीन महान आत्माओं ने मनुष्यता की लाज बनाए रखी और अपने जीवन का बलिदान करने से हिचकिचाए नहीं, वैसे ही हमें कार्य करते रहना चाहिए। इसके लिए चाहे हमें अपने प्राणों का बलिदान क्यों न देना पड़े? मनुष्यता तभी कायम रखी जा सकती है, जब मनुष्य बलिदान देने के लिए तत्पर रहता है। तभी मनुष्य जाति का कल्याण संभव है।
(ख) कवि के अनुसार यदि सभी लोग एक होकर चलते हैं, तो इससे प्रेम तथा भाईचारे की भावना को बल मिलता है। इसके विभिन्न लाभ हैं। कठिनाइयों का सामना करना सरल हो जाता है। एकता स्थापित होती है। शत्रु निर्बल हो जाता है। अमन और शांति का प्रसार होता है। प्रेम बढ़ता है। संगठन शक्ति बढ़ती है। प्रगति और विकास की गति बढ़ जाती है। मतभेद समाप्त हो जाते हैं। कलह और द्वेष की भावना का अंत होता है। अन्य लोगों को साथ चलने की प्रेरणा मिलती है।
(ग) कवियत्री अपने आस्था रूपी दीपक से निरंतर हर परिस्थिति में हँसते-हँसते जलने के लिए कह रही है। क्योंकि उसके जलने से इन तारों रूपी संसार के लोगों को राहत मिलेगी। उनके अनुसार लोगों के अंदर भगवान को लेकर विश्वास धुंधला रहा है। थोड़ा-सा कष्ट आने पर वे परेशान हो जाते हैं। अत: तेरा जलना अति आवश्यक है। तुझे जलता हुआ देखकर उनका विश्वास बना रहेगा। उनके अनुसार एक आस्था के दीपक से सौ अन्य दीपकों को प्रकाश मिल सकता है।
(घ) 'आत्मत्राण' कविता रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित कविता है। आत्मत्राण कविता में कवि मनुष्य को भगवान के प्रति विश्वास बनाए रखने का संदेश देता है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि चाहे कितना कठिन समय हो या कितनी विपदाएँ जीवन में हों। परन्तु हमारी आस्था भगवान पर बनी रहनी चाहिए। उनके अनुसार जीवन में थोड़ा-सा दुख आते ही, मनुष्य का भगवान पर से विश्वास हट जाता है। कवि भगवान से प्रार्थना करता है कि ऐसे समय मैं आप मेरे मन में अपने प्रति विश्वास को बनाए रखना। उनके अनुसार भगवान पर विश्वास ही उन्हें सारी विपदाओं व कठिनाइयों से उभरने की शक्ति देता है। दूसरे वह (भगवान) मनुष्य को विषम परिस्थितियों में निडर होकर लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके अनुसार भगवान में वे शक्तियाँ हैं कि वह असंभव को संभव को बना सकते हैं। परन्तु कवि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हो, वह उनसे स्वयं आमना-सामना करें। भगवान मात्र उसका सहयोग करे। इससे होगा यह कि वह स्वयं इतना मजबूत हो जाएगा कि हर परिस्थिति में कमजोर नहीं पड़ेगा और उसका डटकर सामना करेगा।
(क) 'बिहारी के दोहे' के आधार पर लिखिए की माला जपने और तिलक लगाने से क्या होता है। ईश्वर किससे प्रसन्न रहते हैं?
(ख) 'मनुष्यता' कविता में कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
(ग) 'आत्मत्राण' कविता में कोई सहायता न मिलने पर कवि की क्या प्रार्थना है?
(क)बिहारी के अनुसार ईश्वर को तो केवल सच्ची भक्ति से ही पाया जा सकता है। हाथ पर माला लेकर जपने तथा माथे पर चन्दन का तिलक लागकर जप करने से वह किसी काम नहीं आता है। यह सब बाहरी आडम्बर हैं। इस तरह के आडम्बरों से ईश्वर को पाया नहीं किया जा सकता। ये साधन साधक के लिए बाधा के समान है।
(ख) कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है जिससे सब मैत्री भाव से आपस में मिलकर रहें क्योंकि एक होने से सभी कार्य सफल होते हैं ऊँच-नीच, वर्ग भेद नहीं रहता। सभी एक पिता परमेश्वर की संतान हैं। अत: सब एक हैं।
(ग) कवि सहायक के न मिलने पर प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले।
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